पर्युषण का परिचय

पर्युषण जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो आत्मनिरीक्षण, शुद्धि और आध्यात्मिक नवीकरण का समय है। यह आठ दिवसीय पर्व शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए उपवास, ध्यान और क्षमायाचना का प्रयास करता है, जिससे आत्मा के कर्मों का शुद्धिकरण होता है।

पर्युषण का विस्तृत विवरण

ऐतिहासिक जड़ें और महत्व:
पर्युषण प्राचीन जैन परंपरा में आत्म-त्याग और तपस्या का समय है, जब जैन अपने पूरे वर्ष के कार्यों पर विचार करते हैं और क्षमा मांगते हैं।

दर्शनशास्त्रीय आधार:

आध्यात्मिक अनुशासन: उपवास और भौतिक गतिविधियों का नियंत्रण आत्मा और शरीर की शुद्धि करता है।
मिच्छामी दुक्कड़म: पर्युषण का एक मुख्य अभ्यास क्षमा मांगना है, जो विनम्रता और करुणा को बढ़ावा देता है।
उपवास और ध्यान: विभिन्न उपवास रूपों के माध्यम से आत्मा की शुद्धि की जाती है।


पर्युषण का उल्लेख कई जैन शास्त्रों, जैसे कल्पसूत्र में मिलता है, जो आत्मशुद्धि और कर्मों के बंधनों को समाप्त करने के महत्व को दर्शाता है।


आधुनिक जीवनशैली में, पर्युषण आत्मनिरीक्षण, क्षमा और आध्यात्मिकता को फिर से जगाने का एक अवसर है।


पर्युषण का पालन करने के लिए व्यावहारिक सुझाव:
दैनिक आत्मनिरीक्षण: प्रतिदिन अपने विचारों और कार्यों पर ध्यान दें।
उपवास: अपने स्वास्थ्य और जीवनशैली के अनुसार उचित उपवास चुनें।
क्षमायाचना: जिनसे आपको नुकसान पहुँचा हो, उनसे क्षमा मांगें और दूसरों को भी क्षमा करें।
ध्यान और माइंडफुलनेस प्रैक्टिस: ध्यान और श्वास अभ्यास के माध्यम से पर्युषण के दौरान अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर ध्यान केंद्रित करें।

वीडियो व्याख्यान

शीर्षक: "जैन धर्म में पर्युषण का महत्व"
अवधि: 8 मिनट
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पर्युषण क्विज

क्विज़ निर्देश:

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प्रत्येक प्रश्न के बहुविकल्पीय उत्तर हैं।

क्विज लिंक:
जैन धर्म और पर्युषण के लिए ऑनलाइन क्विज़:जैन यूनिवर्सिटी क्विज

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पुस्तकें और लेख:

"कल्पसूत्र" - हरमन जैकोबी द्वारा अनुवादित
"जैन धर्म में शुद्धि का मार्ग" - पद्मनाभ एस. जैनि
"पर्युषण: क्षमा और उपवास का पर्व" - शुगन सी. जैन

बाहरी लिंक:

जैन ई-लाइब्रेरी
पर्युषण की समझ